Sunday, August 15, 2010

Dil Se...

दिल से...


ब्लॉग ...ब्लॉग...ब्लॉग | ब्लॉग कि हवा में बहते हुए कई दिनों से श्रीमतीजी, चिरागे खानदान के पीछे पड़ी थी कि मेरा ब्लॉग बना दो बेटा...ब्लॉग बना दो बेटा | बीती रात यानी कि आज़ादी से पहले की रात साहबजादे ने  देर रात जग कर मम्मी का तो नहीं लेकिन अपना ब्लॉग बना डाला | आज़ादी की सुबह हम मियां बीबी तो चले गए आज़ादी का जशन मनाने प्रोग्राम में, गोया कि जिम्मेदारी जो है हम दोनों क़ी | क्योंकि मैं 'पी.आर.ओ.' ठहरा कंपनी और वो मास्टरनी | कम्पनी में स्कूल और फोर्स के जवानो के तालमेल से 4 घंटे का शानदार प्रोग्राम हमेशा होता है | स्कूल के बच्चे शानदार सांस्कृतिक  प्रोग्राम देते हैं | तकरीबन 12 बजे आज़ादी का जशन मना कर हम आजाद हुए और घर पर आये, तो मम्मी को उनके दुलरुआ ने सरप्राइज दिया कि मम्मी मैंने अपना ब्लॉग बना लिया | अब क्या था माताजी का पेट मथने लगा | जल्दी दिखाओ,  जल्दी दिखाओ बस बेचैन हो गई | अरे वाह, बरबस ही निकल पड़ा उनके मुंह से और आँखे नम होने के साथ-साथ गला भर गया वो पढ़ कर, जो उसने लिखा था | क्योंकि उम्र के लिहाज से हिंदी में उसने जो लिखा, वो अगर बहुत साहित्यिक  नहीं तो प्रशंसनीय तो जरूर है |
अब तो मम्मी का भी ब्लॉग बनना शुरू हो गया |  चिरागे खानदान ने फटाफट मम्मी का ब्लॉग भी बना दिया | बस फिर क्या था बेगम साहिबा ने भी बिस्मिल्लाह कर डाला, गोया कि साहित्यिक भी जो हैं वो | अब नंबर मेरा था कि आप भी अपना ब्लॉग बनाइये | साथ ही लगा दिया चिरागे खानदान को, कि पापा का भी ब्लॉग बना दो | मम्मी का लाडला लग गया पीछे, और खोद-खोद कर सब कुछ भर डाला ब्लॉग में, बस बन गया मेरा भी ब्लॉग | 
ब्लॉग क्या बना, बैठना, लेटना व कुछ सोचना हराम कर दिया बेगम ने | ब्लॉग बन गया है तो शुरुआत तो कर दीजिये |  सोचा, जब मेढकी को नाल ठुक गई है तो चलो बिस्मिल्लाह कर ही दूँ नहीं तो चैन नहीं लेने दिया जायेगा | इधर मैं सोच ही रहा था- क्या लिखूं, कहाँ से लिखूं, कि मुझे सुनाई  दिया कि श्रीमती जी हैदराबाद फ़ोन लगा कर जुट गयीं, मेरी दुलारी बिटिया को पनिहाने में कि मैंने और तुम्हारे भाई साहब ने अपना-अपना ब्लॉग बना लिया है और पापा ने भी नाल ठुकवा ली है, तुम भी अपना ब्लॉग बनाओ |
बिटिया ने मुझसे बात करना चाहा तो बेगम ने उसे बोला कि अभी वो जुटे हैं ब्लॉग लिखने में, और मेरी तरफ देख कर बोली कि "लिखो ना......??"
और बस मैंने शुरू कर दिया..... 
बस ऐसे ही कुछ बीते दिनों की.... तो कभी कुछ आज की..... और इसी में  कुछ आने वाले दिनों की, अपनी बाते आपसे करते हुए एक माला पिरोने  की कोशिश रहेगी, उम्मीद है कि यह बाते अपने-अपने नजरिये से हर किसी को कुछ कहने व सोचने पर मजबूर करेगी....